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जानिए कैसे हुआ कांग्रेस पार्टी का गठन,,, क्या है ,कांग्रेस पार्टी का इतिहास……..

जानिए कैसे हुआ कांग्रेस पार्टी का गठन,,, क्या है ,कांग्रेस पार्टी का इतिहास……..

जानिए कैसे हुआ कांग्रेस पार्टी का गठन,,, क्या है ,
कांग्रेस पार्टी का इतिहास….

हम जानते हैं कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस पार्टी की एक विशेष भूमिका रही है ऐसे में पार्टी के इतिहास को जान लेना हमारे लिए बहुत जरूरी हो जाता है आज हम इसी पार्टी के इतिहास के बारे में जानेंगे इसकी स्थापना कब की गई क्यों की गई इन तमाम बिंदुओं को समझने की कोशिश करेंगे…….

चलिए सबसे पहले जानते हैं कांग्रेस पार्टी का गठन क्यों हुआ फिलहाल आपको बता दें कि 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ था.

.. जिसे भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है लेकिन यदि हम इतिहास की किताबों को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि अधिकांश इतिहासकार 1857 से 1885 के दौर को भारतीय औपनिवेशिक इतिहास के अध्याय को काले अध्याय रूप में देखते हैं और इसको एक ब्लैक चैप्टर के रूप में देखा जाता है इस संबंध में भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार निरंजन खिलनानी ने अपने किताब में लिखते हुए कहा है,,,,, कि आप इतिहास के साक्ष्य को अब जितना ज्यादा पढ़ेंगे रिकॉर्ड आपको इसके संबंध में उतना ज्यादा स्पष्ट हो जाएगा कि साल 1857 से 1885 का दौर था वह कितना तनाव से भरा हुआ था……….

तथा कितनी ज्यादा उत्पीड़न से भरा हुआ था इस पूरे दौर में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय लोगों पर बहुत ज्यादा उत्पीड़न किया और भारतीय लोगों के बीच तनाव बहुत ज्यादा बढ़ने लगा और इस तनाव के कारण एक असंतोषजनक भावना को जन्म दिया और 1860 से 1870 का दशक था उस पूरे दशक के दौरान जो तमाम घटनाएं हुई घटनाओं की वजह से या असंतोष अपनी चरम पर पहुंच गया और इसी अपनी असंतोष की चरम सीमा के वजह से और तभी 1885 में कांग्रेस पार्टी का गठन किया गया ……..…….

आपको बता दें कि पार्टी के गठन होने से पहले किन घटनाओं ने पार्टी को प्रेरित किया की पार्टी का गठन होना चाहिए इसमें सबसे पहले आपको घटना बता दें ……..कि सूखे की घटना थी ऐसे इतिहास के साक्ष्यों में हमें कई रिकॉर्ड्स देखने को मिले हैं जिसमें 1860 से 1870 के दशक में हमें भारत कॉन्टिनेंट में बहुत सारे सूखे की घटनाएं देखने को मिली थी और इन घटनाओं के दौरान हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी इसमें बहुत सारे लोगों की मौत हुई थी इसके अलावा इसके पूरी अवधि के दौरान बहुत तरीकों की बीमारी देखने को मिली और इन बीमारियों की वजह से कहा जाता है कि कुछ क्षेत्रों की आबादी 25% लगभग समाप्त हो गई थी बहुत ज्यादा व्यापक स्तर पर लोगों की जान गई थी और इस तरह की घटना की वजह से इस तरह की प्राकृतिक घटना की वजह से उस पूरी अवधि के दौरान महंगाई 300% तक बढ़ोतरी देखने को मिली थी उस समय इन्फ्लेशन रेट 300% तक बढ़ गया था यानी आम लोगों को जो सामान की जरूरत थी उन्हें 300% ज्यादा रुपए देने पड़ते थे और इसी पूरी अवधि के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा भूमि राजस्व और किराए के दर में भी बढ़ोतरी की गई तो जाहिर तौर पर लोगों पर दुगना दबाव बनने लगा …………..

एक तो उन्हें बहुत सारे महंगे दामों पर चीजें खरीदनी पड़ रही थी बल्कि दूसरी ओर उन्हें ज्यादा राजस्व और किराया चुकाना पड़ रहा था तो इसी पूरी स्थिति की वजह से आम लोगों के मन में सरकार के खिलाफ जो भावना प्रबल हो गई और सरकार के खिलाफ असंतोष की भावना थी और वह ज्यादा बढ़ने लगी और साल 1877 में ऐसी घटना हुई जिससे कि यह जो असंतोष की भावना थी और दरअसल साल 1877 के आसपास 1870 के दशक में ब्रिटिश राज्य में रानी विक्टोरिया आई थी ………..

इसी घटना को चिन्हित करने के लिए दिल्ली में बड़े समारोह का आयोजन किया गया तो इस तरह आम लोग एक तरफ भुखमरी का सामना कर रहे थे लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं थे वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार द्वारा समारोह का आयोजन किया जा रहा था ……….तो जाहिर तौर पर आम लोगों में असंतोष की भावना बहुत ज्यादा बढ़ गई और इस अवधि के दौरान साल 1860 से 1870 के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा ऐसे कानून लागू किए गए उन कानूनों ने भी असंतोष की भावना को बढ़ाने में बहुत ज्यादा ही भूमिका निभाई इस संबंध में साल 1877 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट काफी ज्यादा प्रमुख है जिसको मुख्य तौर पर भारत ने प्रेस स्वतंत्रता पर रोक लगाने के लिए लागू किया गया था दरअसल इस पूरी अवधि के दौरान साल 1860– 1870 की अवधि के दौरान भारत में जो प्रेस थी उस प्रेस को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक प्रमुख आवास के तौर पर देखा जाता था ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेस का प्रयोग किया जाता था आर्टिकल लिखे जाते थे लेटर लिखे जाते थे और इन्हीं तमाम चीजों को रोकने के लिए भारत ने राष्ट्रवादी भावना को पनपने से रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा साल 1878 में इस तरह का कानून लागू किया।तो यह एक प्रमुख रीज़न था तथा इसके अलावा साल 1883 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जो ब्रिटिश काउंसिल थी वहां इल्बर्ट बिल के हार हो गई और यह जो इल्बर्ट बिल था इस का प्राथमिक उद्देश्य उस समय भारत की जो न्यायपालिका में मौजूद भेदभाव को समाप्त करना था दरअसल उस समय या प्रथा बहुत प्रचलित थी कि यदि कोई अंग्रेज अफसर पर मुकदमा चलाया जा रहा है तो उस मुकदमे में जो ज्यूरी होगी उसमें कोई भारतीय व्यक्ति शामिल नहीं होगा क्योंकि भारतीय व्यक्तियों को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा अंग्रेज अफसरों द्वारा कमतर समझा जाता था लेकिन इस बिल के जरिए इस भेदभाव को समाप्त करने की कोशिश की जा रही थी लेकिन इस पूरे काउंसिल में बिल की हार हो गई तो इसकी वजह से भारतीय लोगों को या महसूस होने लगा कि ब्रिटिश सरकार हमेशा से ही भारतीयों को कमजोर समझती है और भारतीयों की हमेशा से अवहेलना की जाती है और इसी वजह से इन्हीं तमाम बिंदुओं की वजह से अंततः साल 1880 का दशक आया तो इस 80 के दशक की शुरुआत में आम लोगों में असंतोष की भावना बहुत तेजी से बढ़ने लगी और अपने चरम स्तर पर पहुंच गई
और इसी असंतोष की भावना ने

अंततः जन्म दिया कांग्रेस पार्टी को और इस कांग्रेस पार्टी की स्थापना में एक ब्रिटिश अधिकारी जिनका नाम था एलेन एक्टेवियन ह्यूम यानी ए ओ ह्यूम इन्होंने बहुत इंपॉर्टेंट भूमिका अदा की थी या ब्रिटिश भी रोक राइट थे जोकि साल 1882 ब्रिटिश सरकार की सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे यानी रिटायर हुए थे और इन्हें भारतीय संस्कृति और भारतीय धर्म में काफी ज्यादा दिलचस्पी थी और इसी वजह से थियोसॉफिकल सोसायटी के भी सदस्य थे जहां पर धार्मिक मामलों पर चर्चा की जाती थी और साल1884 में इसी थियोसोफिकल सोसायटी का वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया गया मद्रास के अड्यार में वार्षिक सम्मेलन के दौरान और इसी वार्षिक सम्मेलन के दौरान ए ओ ह्यूम ने एक संगठन बनाने का विचार किया इस पूरे वार्षिक सम्मेलन के दौरान सिर्फ 17 लोग मौजूद थे और इन्हीं 17 लोगों के बीच ए ओ ह्यूम एक संगठन बनाने की बात की एक अखिल भारतीय स्तर पर पैन इंडिया लेवल पर जिसकी जो मौजूदगी होगी भारत के तकरीबन तमाम क्षेत्रों में सभी क्षेत्रों में मौजूद होगा संगठन तो ऐसे संगठन बनाने की बात की गई थी और उसके बाद या विचार आगे बढ़ा और अंततः यह तय किया गया साल 1885 में पुणे में एक अधिवेशन आयोजित किया जाएगा एक समारोह आयोजित होगा जहां पर औपचारिक तौर पर कांग्रेस पार्टी का गठन किया जाएगा लेकिन जब साल 1885 पास आया तब पुणे में एक बीमारी फैलने लगी कॉलरा फैलने लगा जिसके बाद यह जो पूरा वेन्यू था जो लोकेशन थी उसको शिफ्ट कर दिया गया और यह तय किया गया 28 दिसंबर 1885 मुंबई में कांग्रेस का एक अधिवेशन आयोजित होगा और इसी अधिवेशन के दौरान 28 दिसंबर 1885 को 72 लोग मौजूद थे जो की मुंबई में अधिवेशन हुआ था और इसी अधिवेशन के के दौरान औपचारिक तौर पर आधिकारिक तौर पर कांग्रेस पार्टी की स्थापना की गई थी तो कांग्रेस पार्टी का पहला अधिवेशन मुंबई में आयोजित किया गया जिसमें 72 लोग मौजूद थे और इन्हीं 72 लोगों ने सर्वसम्मति से व्योमेश चंद्र बनर्जी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना था……
अब हम जानेंगे भारतीय कांग्रेस की स्थापना क्यों हुई और उसके उद्देश्य क्या थे भारतीय कांग्रेस पार्टी के उद्देश्य यह थे कि अखिल भारतीय संगठन बनाया जाए एक पैन इंडिया संगठन बनाया जाए जिसमें भारत के सभी स्टेटस के लोग शामिल होंगे और इस संगठन के माध्यम से और एक व्यापक राष्ट्रवादी आंदोलन की शुरुआत की जाएगी एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा जिसकी पहुंच भारत के सभी कोनो में होगी इसके अलावा इस पूरे आंदोलन के जरिए पूरी पार्टी के जरिए प्राथमिक तौर पर लोगों को राजनीतिक तौर पर पॉलिटिकली एजुकेट करने की बात की गई थी और इसी पूरे देश को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार से सरकारी परिषदों में जो गवर्नमेंट काउंसिल थी उन परिषदों में भारतीय लोगों को शामिल करने की मांग की थी इसके अलावा आगे चलकर कांग्रेस पार्टी ने जो ब्रिटिश सिविल सेवाएं थी उन सेवाओं का भारतीकरण करने की बात की गई थी…..।
इसकी बात की गई थी कि भारतीय लोगों को भी इसमें शामिल किया जाएगा इस तरह से हम लोग समग्र तौर पर कह सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी का प्राथमिक उद्देश्य आम लोगों के पक्ष में ब्रिटिश सरकार की नीतियों को इनफ्लुएंस करना था यानी ब्रिटिश सरकार को इस तरह की नीतियां बनाने को मजबूर करना था इन नीतियों से आम लोगों को कुछ फायदा हो सके.. । लेकिन यहां पर एक सवाल एक महत्वपूर्ण हो जाता है कि कि जब कांग्रेस पार्टी स्थापना प्राथमिक तौर पर प्रारंभ में केवल ब्रिटिश सरकार की नीतियों को इनफ्लुएंस करने के लिए हुई थी तो आखिर इस पॉलीटिकल ऑडियोलॉजी में में बदलाव किस तरह आया कि आखिर पार्टी ने आगे चलकर स्वतंत्रता की बात कैसे की और उस पूरी जर्नी को समझते हैं की पॉलिटिकल वैचारिक बदलाव कैसे आया आपको बता दें कि पार्टी की स्थापना के बाद पार्टी के सदस्यों ने राजनीतिक संघर्ष करना प्रारंभ कर दिया राजनीतिक संघर्ष शुरू हो गया और इस पूरे स्ट्रगल के दौरान मुख्य तौर पर ब्रिटिश दृष्टिकोण को बदलने की बदलने की कोशिश की गई खास तौर पर भारतीय लोगों के अधिकारों यानी भारतीय लोगों को अधिकार मिल सके इसलिए ब्रिटिश सरकार के पर्सपेक्टिव में जो दृष्टिकोण था उसमें बदलाव करने की कोशिश की जा रही थी लेकिन कुछ बड़ा बदलाव देखने को मिला नहीं पार्टी के स्थापना के बहुत लंबे समय तक कोई भी बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला और इसी वजह से कई लोगों द्वारा ए ओ ह्यूम और उनसे जुड़े तमाम लोगों की आलोचना भी की जाने लगी ब्रिटिश सरकार भी ए ओ ह्यूम की आलोचना करने लगी और आम भारतीय लोग भी ए ओ ह्यूम की आलोचना करने लगे बेटी सरकार इस आधार पर उनकी आलोचना कर रही थी कि ए ओ ह्यूम उसी उसी सिस्टम को समाप्त करना चाहते हैं उसी सिस्टम को बदलना चाहते हैं यह सिस्टम की वजह से उन्हें इतना ज्यादा लाभ मिला है जबकि आम भारतीय लोग इस आधार पर आलोचना कर रहे थे कि इतने बड़े आंदोलन शुरू होने के बाद भी अभी तक कोई विशेष बदलाव देखने को नहीं मिला कोई निश्चित परिणाम नहीं मिला इसी की पूरी परिदृश्य में 19 वी सदी के अंत में 1894 के आसपास ए ओ ह्यूम वापस लंदन चले गए जब ए ओ ह्यूम वापस लंदन चले गए तो उस तरह से कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व था वह आखिरकार भारतीयों के हाथ में आ चुका था तो इस तरह पार्टी का नेतृत्व अब भारतीय लोगों के हाथ में था लेकिन उस समय भी अक्सर कांग्रेस पर यह आरोप लगे कि कांग्रेस पार्टी भी उस समय केवल शिक्षित उच्च वर्ग का ही दल है और शिक्षित लोगों की पार्टी है जिसने मुख्य तौर पर ऐसे लोग ही शामिल है जो विदेशों से पढ़ कर आए हैं लेकिन इस धारणा में बदलाव आना तब शुरू हुआ जब कांग्रेस पार्टी ने अपनी रीजनल ब्रांच एस गठित करना शुरू कर दिए और या जब जब यह प्रांतीय शाखाओं की शुरुआत हुई तो कांग्रेस पार्टी ने नए-नए लोग जोड़ने लगे और जब नए लोग जुड़े तो इसकी वजह से कांग्रेस पार्टी में हमें डाइवर्सिटी यानी विविधता देखने को मिली …………।
और इस तरह से जो कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे वह मुख्य तौर पर ब्रिटिश सरकार की तमाम नीतियां थी जो उत्पीड़न से जुड़े तमाम मुद्दे थे उनके खिलाफ मुखरता से आवाज उठाने लगे एक मुखर आवाज उठाने लगे और इस पूरी अवधि के दौरान कांग्रेस पार्टी के जो सदस्य थे उन्होंने बंगाल के आए अकाल के खिलाफ आवाज उठाई उसके अलावा भारत में धन की निकासी के खिलाफ आवाज उठाई गई इस कांसेप्ट को ड्रेन ऑफ वेल्थ कहा जाता है जिसे दादा भाई नौरोजी द्वारा पेश किया गया था तो इस तरह से तमाम मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाई गई लेकिन इसके बावजूद भी इस पूरी अवधि के दौरान जो कांग्रेस पार्टी की कार्यप्रणाली थी उस कार्यप्रणाली में मुख्यता मुख्य तौर पर प्रार्थना और याचिकाओं पर जोर दिया जाता था इस पूरी अवधि के दौरान कांग्रेस पार्टी की वर्किंग यानी जो प्रोसेस था उस प्रोसेस में कांग्रेस पार्टी के जो सदस्य थे वह अधिकारियों को पत्र लिखे थे लेटर लिखते थे और उनके खिलाफ आर्टिकल्स लिखे जाते थे तो इस तरह से एक एलईटीस्ट फॉर्म देखने को मिलती है मुख्य तौर पर प्रार्थना और याचिकाओं पर जोर दिया जाता है लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस पार्टी में व्यवस्था दी गई तो विरोध के तौर तरीके भी बदल गए हम जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी जो विविधता थी वह सबसे बड़ी शक्ति थी वह सबसे बड़ी विशेषता थी और उस समय अपनी स्थापना के लंबे समय बाद पार्टी में एक समय ऐसा भी आया कि भारत में तमाम आईडियोलॉजिस्ट ग्रुप थे वह सभी वह सभी कांग्रेस पार्टी से अलग-अलग विचार धाराओं के लोग भी कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे लेकिन इस बड़ी शक्ति का इस विशेषता का नुकसान भी आगे चलकर कांग्रेस पार्टी को झेलना पड़ा और इसका पहला नुकसान साल 1996 में आया जब कांग्रेस पार्टी का सूरत अधिवेशन आयोजित किया गया और इस पूरे अधिवेशन के दौरान नरम दल और गरम दल के बीच वैचारिक मतभेद देखने को मिला इस पूरे अधिवेशन में जो नरम दल का नेतृत्व कर रहे थे गोपाल कृष्ण गोखले और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जबकि गरम दल का नेतृत्व कर रहे थे बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय दरअसल दोनों के बीच मतभेद या था कि इस अधिवेशन से पहले साल 1905 में ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा बंगाल विभाजन का विभाजन कर दिया गया इस विभाजन के बाद सन 1906 में प्रिंस ऑफ वेल्स भारत का दौरा कर कर रहे थे अब इस दौरे को लेकर गरम दल के नेताओं का मानना था कि भारत में कांग्रेस पार्टी को इस पूरे दौरे का विरोध करना चाहिए जबकि नरम दल के नेताओं का मानना था कि कांग्रेस पार्टी को इस तरह का कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए इसी को लेकर दोनों दलों में मतभेद हुआ और या मतभेद आगे चलकर कांग्रेस पार्टी के विभाजन को जन्म देता है और साल 1906 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो जाता है हालांकि 1915 में एक साथ फिर वापस आ जाते हैं और इस तरह का विभाजन हमें आगे चलकर बहुत सारे विभाजन देखने को मिलते हैं जिसमें कि 1960 में इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के बीच में जो लड़ाई हुई थी वह काफी ज्यादा प्रमुख मानी जाती है काफी दिलचस्प मानी जाती है इस पूरी लड़ाई में एक और इंदिरा गांधी के पार्टी समर्थक मौजूद थे वहीं दूसरी ओर सिंडिकेट के समर्थक मौजूद थे इस पूरी लड़ाई में इंदिरा गांधी जो थी वह सोशलिज्म के पक्ष में थी वाह बैंकों के नेशनलाइजेशन के पक्ष में थी जबकि जो सिंडिकेट था वह बैंकों के नेशनलाइजेशन के पक्ष में नहीं था और अंततः कांग्रेस पार्टी का इस घटना के बाद 1960 दोबारा से विभाजन हो गया था तो यह वैचारिक मतभेद की बात हुई। ……..।

अब हम आपको सेफ्टी वाल्व थ्योरी के बारे में बताएंगे दरअसल या सिद्धांत कहता है कि कांग्रेस पार्टी जो गठित की गई थी 1885 में कांग्रेस पार्टी का गठन भारतीयों के हितों में नहीं बल्कि खुद ब्रिटिश सरकार के हित में किया गया था और यदि 1885 में कांग्रेस पार्टी का गठन नहीं हुआ होता तो भारत को 1947 से पहले आजादी मिल जाती,,,,

चलिए इस सेफ्टी बाल थ्योरी में क्या तर्क किए जाते हैं जानते हैं तो इस सिद्धांत में कहा जाता है कि दरअसल जब ए ओ ह्यूम साल 1882 में ब्रिटिश सरकार की सेवा में लगे हुए थे तो उन्हें खुफिया रिकॉर्ड प्राप्त हुई थी इस खुफिया रिकॉर्ड में कहा गया था कि भारत में आम लोगों में असंतोष काफी अधिक तेजी से बढ़ रहा है और इस असंतोष की वजह से भारत में जल्द ही भर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साल अट्ठारह सौ सत्तावन जैसी एक और क्रांति देखने को मिल सकती है ब्रिटिश सरकार इस पूरी रिपोर्ट से डर गई और ए ओ ह्यूम इस पूरी रिपोर्ट से डर गए थे और अंततः वह इस रिपोर्ट को लेकर उस समय के वायसराय लॉर्ड डफरिन के पास गए और रिपोर्ट के साथ उन्होंने योजना भी बनाई और यह योजना थी कि भारत में अखिल भारतीय स्थल पर राजनीतिक संगठन बनाया जाए और इस राजनीतिक संगठन में भारत में शिक्षित लोगों को शामिल किया जाएगा और इस राजनीतिक संगठन के जरिए भारत के शिक्षित लोग शिक्षक लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी तमाम समस्याओं को तमाम चिंताओं को ब्रिटिश सरकार के समक्ष पेश कर सकेंगे तो इस इस तरह से शांतिपूर्ण तरीके से वार्ताओं को बढ़ावा दिया जाने की बात कही गई ताकि भारत में किसी भी क्रांति की संभावना को पूरी तरह से रोका जा सके

तो इस तरह से इसे एक सेफ्टी वाल्व तौर पर एक सुरक्षा कवच के तौर पर यूज किया गया कांग्रेस पार्टी को अभी सिद्धांत के पक्ष में 2 तरीके के तर्क दिए जाते हैं पहला तकिया है कि जब कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई तो स्थापना के समय कांग्रेस पार्टी ने भारत में स्वतंत्रता की बात नहीं कि भारत को आजाद करने की बात नहीं की बल्कि प्रारंभ में केवल ब्रिटिश सरकार नीतियों को इनफ्लुएंस करने की की बात की गई थी

तो जाहिर तौर पर उस समय ब्रिटिश सरकार ने सरकार को एक सुरक्षा कवच के तौर पर गठित किया गया था दूसरा तकिया दिया जाता है कि यदि कांग्रेस पार्टी ब्रिटिश सरकार नहीं मिली होती तो आखिर उस समय वायसराय ने कांग्रेस पार्टी के तमाम अधिवेशनों को आयोजित करने की अनुमति क्यों दी लेकिन इस पूरी थ्योरी के विपक्ष में एक तर्क दिया जाता है कि ए ओ ह्यूम ने भले कांग्रेस पार्टी को स्थापित किया हो लेकिन जो उस पार्टी में भारतीय लोग मौजूद थे भारतीय भारतीय लोगों ने ए ओ ह्यूम का प्रयोग किया था कि एक ऐसा संगठन बनाया जा सके जिसके माध्यम से भारत में जो तमाम आंदोलन चल रहे हैं ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलनों को एक संगठित रूप मिल सके एक ऑर्गेनाइज्ड फॉर्म मिल सके जिसमें ए ओ ह्यूम का यूज इसलिए किया गया

क्योंकि उस समय ब्रिटिश सरकार यदि कोई भारतीय इस तरह का संगठन बनाता है तो उस संगठन को पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाता था इसी वजह से ए ओ ह्यूम को संगठन बनाने के लिए केवल यूज किया गया था केवल एक इंस्ट्रूमेंट की तरह से ……………………..
तो इस प्रकार भारतीय कांग्रेस पार्टी का गठन किया गया था………………..।

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