दलाई लामा का 90वां जन्मदिन: चीन ने बिछाया था जाल, भारत ने बढ़ाया हाथ.. तिब्बत से भागकर धर्मशाला में बसने की कहानी
Dalai Lama 90th Birthday: दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण जन्मदिन है क्योंकि उन्होंने संकेत दिया है कि वह उस दिन अपने संभावित उत्तराधिकारी के बारे में और अधिक कह सकते हैं. शायद उसके नाम का ऐलान तक कर दें.
बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल (Dalai Lama 90th Birthday) के हो जाएंगे. दलाई लामा खुद को भले केवल एक साधारण भिक्षु कहते हैं, लेकिन पिछले 60 से अधिक सालों से आकर्षण और दृढ़ विश्वास से लैस होकर, वह अपने तिब्बत के लोगों और उनके हितों को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में बनाए रखने में कामयाब रहे हैं. उनके इस मिशन की कर्मभूमि भारत ही रहा है.
दलाई लामा उनका नाम नहीं बल्कि उनका पद है. वे 14वें दलाई लामा हैं और उनका असल नाम तेनजिन ग्यात्सो है. चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद 1959 में हजारों अन्य तिब्बतियों के साथ वो भारत निर्वासित हो गए थे और तब से उन्होंने यहीं शरण ली है. उन्होंने तिब्बती लोगों के लिए स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता की मांग के लिए एक अहिंसक “मध्य मार्ग” की वकालत की है, और अपने प्रयासों के लिए 1989 का नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया है.
दलाई लामा रविवार को 90 वर्ष के हो जाएंगे. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण जन्मदिन है क्योंकि उन्होंने संकेत दिया है कि वह उस दिन अपने संभावित उत्तराधिकारी के बारे में और अधिक कह सकते हैं. शायद उसके नाम का ऐलान तक कर दें. तिब्बती परंपरा का मानना है कि एक बड़े बौद्ध भिक्षु की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा एक बच्चे के शरीर में पुनर्जन्म लेती है और अलगा दलाई लामा वहीं बनता है.
चलिए इस मौके पर आपको बताते हैं कि दलाई लामा को कब और किन परिस्थितियों में तिब्बत छोड़ना पड़ा, भारत ने कैसे उनको पनाह दी.
निर्वासन में दलाई लामा का जीवन
दलाई लामा का जन्म 1935 में ल्हामो धोंदुप में एक किसान परिवार में हुआ था. अभी यह क्षेत्र किंघई के उत्तर-पश्चिमी चीनी प्रांत में है. दो साल की उम्र में, एक खोज दल ने उन्हें तिब्बत के आध्यात्मिक और लौकिक नेता का 14वां अवतार माना था.
लेकिन चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया. इस कब्जे को चीन ने “शांतिपूर्ण मुक्ति” कहा. किशोर दलाई लामा ने कुछ ही समय बाद एक राजनीतिक भूमिका निभाई, उन्होंने माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं से मिलने के लिए बीजिंग की यात्रा की. इसके नौ साल बाद, इस डर से कि दलाई लामा का अपहरण किया जा सकता है, तिब्बत में एक बड़े विद्रोह को बढ़ावा मिला. चीनी सेना ने इसके बाद तिब्बत में किसी भी विद्रोह को दबाने के लिए जुल्म ढाए.
10 मार्च 1959 को, 23 साल के दलाई लामा को एक चीनी जनरल ने नृत्य प्रदर्शनी के लिए बुलाया था – लेकिन उनके साथ कोई सुरक्षा गार्ड नहीं था। इससे तिब्बती अपने आध्यात्मिक नेता की गिरफ्तारी के चीनी साजिश के प्रति सतर्क हो गए। डांस प्रदर्शनी के दिन दलाई लामा के हजारों तिब्बती अनुयायी उनके महल के सामने इकट्ठे हुए और विरोध शुरू कर दिया। इससे यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि चीनी सेना कभी भी महल पर अधिकार कर सकती है। 17 मार्च 1959 की रात को एक सैनिक के रूप में दलाई लामा, उनके परिवार और अनेक प्रमुख अधिकारी महल से बाहर निकल गए। दलाई लामा ने पहले ल्हासा में भारतीय वाणिज्य दूत से भारत में शरण मांगने का अनुरोध किया था। भारत ने उन्हें खुली बाहों से स्वीकार किया।
भारत ने दिल खोलकर दलाई लामा को स्वीकार किया
भारत ने तिब्बत को हमेशा एक स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार किया है और इसके साथ मजबूत व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे हैं। पहले सीमा शांत थी, लेकिन 1954 में इसमें बदलाव आया, जब भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसे ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान लिया।
भारत ने उनकी सुरक्षा के उपाय किये और उनका स्वागत किया. उनका दल कुछ देर के लिए अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ में रुका. मसूरी में नेहरू से मुलाकात के बाद भारत ने 3 अप्रैल 1959 को दलाई लामा को शरण दे दी.
हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला पहले से ही चीनी दमन से भाग रहे हजारों तिब्बती निर्वासितों के लिए एक घर बन गया था. दलाई लामा बाद में स्थायी रूप से वहां बस गए और निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की. इस साहसिक कदम से चीन नाराज हो गया.
बीजिंग की ओर हाथ बढ़ाने की उन्होंने बार-बार कोशिश की. लेकिन अपने प्रयासों से उन्हें कितना कम फायदा हुआ, इससे निराश होकर उन्होंने 1988 में घोषणा की कि उन्होंने चीन से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग छोड़ दी है, और इसके बजाय चीन के भीतर सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता की मांग करेंगे.
2011 में, दलाई लामा ने यह बताया कि वह अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होंगे और इन्हें निर्वासित तिब्बती सरकार के चुने हुए नेता को हस्तांतरित करेंगे। लेकिन वे अब भी सक्रिय हैं. पारंपरिक मैरून और भगवा कपड़े पहने दलाई लामा के पास लगातार मेहमानों की आमद बनी रहती है। उन्हें चलने में कठिनाई और घुटने की सर्जरी जैसे कई स्वास्थ्य मुद्दे हैं। इसके बावजूद, वे अभी भी लंबे समय तक जीने की आशा रखते हैं। दिसंबर में उन्होंने रॉयटर्स से कहा, “मेरे सपने के अनुसार, मैं 110 साल तक जीवित रह सकता हूं.”
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