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ये माचा-माचा क्या है! दिल्ली से लंदन तक ड्रिंक ने क्यों मचाया क्रेज? सूखने लगे जापान में चाय बागान 

ये माचा-माचा क्या है! दिल्ली से लंदन तक ड्रिंक ने क्यों मचाया क्रेज? सूखने लगे जापान में चाय बागान 

Matcha drinks Craze: दुनिया में आजकल एक तरह के चाय ने धूम मचा रखा है. उसका नाम है माचा. इस ड्रिंक का क्रेज सोशल मीडिया ने ऐसा मचाया है कि जिस बड़े सेलिब्रिटी के फीड पर देखो यह नजर आ रहा है. जापान से आने वाली इस ग्रीन टी की खपत ऐसी बढ़ी है कि जापान में इसकी किल्लत होने लगी है. चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर लोगों में इसका क्रेज इतना अधिक क्यों है, इसे तैयार करने के लिए किस तरह का हुनर चाहिए होता है और इसकी पॉपुलैरिटी के बीच जापान सप्लाई बनाए रखने में संघर्ष क्यों कर रहा है. हम आपको माचा भले यहां न पिला रहे हों, लेकिन उसकी कहानी, उसके फ्लेवर से आपको जरूर वाकिफ कराएंगे. तो शुरू करते हैं माचा के क्रेज से.

“कैफे में माचा ही नहीं बचा”

माचा को सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि मिली है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी कमी हो गई है। लॉस एंजेल्स के एक माचा कैफे में, यह पाउडर वाली जापानी चाय सटीकता (एक्यूरेसी) के साथ बनाई जाती है। इस बार के फाउंडर जैच मैंगन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि इस वर्ष हॉलीवुड बुलेवार्ड पर खुलने वाले इस कैफे के मेन्यू में 25 किस्म के माचा शामिल हैं। परंतु इनमें से चार को छोड़कर बाकी सभी स्टॉक में नहीं थे।

उन्होंने कहा, “हमें कस्टमर्स को यह बताते हुए बुरा लगता है कि दुर्भाग्य से, हमारे पास वह नहीं है जो वे चाहते हैं.”

सवाल है कि यह इतना फेमस क्यों हो गया. जैच मैंगन का कहना है कि इसमें घास की सुगंध (ग्रासी अरोमा) तेज है, इसकी चटक रंग हैं और इसको पीकर तरोताजा महसूस होता है, मूड फ्रेश हो जाता है. माचा की लोकप्रियता “पिछले दशक में तेजी से बढ़ी है, लेकिन पिछले दो से तीन वर्षों में यह पहले से कहीं अधिक फेमस हो गया है.”

हालांकि उन्होंने साथ में एक डिस्क्लेमर भी दिया. “यह जरूर कहूंगा की ये ड्रिंक सबके लिए नहीं है क्योंकि इसका स्वाद शुरू-शुरू में थोड़ा अजीब लग सकता है. लेकिन वक्त के साथ आप इसके टेस्ट को समझने लगेंगे और इसके अलावा कुछ और पसंद नहीं आएगा.”

जैच मैंगन का कहना है कि यह ड्रिंक अब पश्चिमी देशों में एक सांस्कृतिक संपर्क बिंदु (कल्चरल टचप्वाइंट) बन गया है जो आइसक्रीम फ्लेवर बोर्ड से लेकर स्टारबक्स तक हर जगह मिल रहा है. इससे हुआ यह कि माचा का बाजार सिर्फ एक वर्ष में लगभग दोगुना हो गया है.

अचानक इतने लोग माचा-माचा क्यों करने लगे?

माचा के लोकप्रियता को सोशल मीडिया से संबंधित किया जा रहा है. एंडी एला जैसे डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स ने इसे प्रोत्साहित किया है, जिनके यूट्यूब पर 600,000 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं. उन्होंने माचा उत्पादों का अपना लेबल शुरू किया है। टोक्यो के प्रसिद्ध हाराजुकु में उन्होंने एक कैफे स्थापित किया है। वहां कई फैंस इस 23 वर्षीय फ्रांसीसी इन्फ्लुएंसर के साथ तस्वीरें खींचने या स्ट्रॉबेरी या सफेद चॉकलेट के फ्लेवर वाले माचा के डिब्बे खरीदने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

जापान पर माचा की पत्तियों की सप्लाई का प्रेशर

लॉस एंजिल्स से हजारों मील दूर, टोक्यो के उत्तर-पश्चिम में एक शहर है सयामा. वहां रहते हैं मासाहिरो ओकुटोमी जो अपने परिवार का चाय व्यवसाय चलाने वाली 15वीं पीढ़ी है. माचा की मांग को देखते हुए वो जितने खुश हैं, वो उतने चिंतित भी. उन्होंने कहा, “मुझे अपनी वेबसाइट पर यह लिखना पड़ा है कि हम अब और माचा ऑर्डर स्वीकार नहीं कर रहे हैं.”

माचा के पाउडर को टेनचा कहते हैं और उसका उत्पादन एक गहन प्रक्रिया है. तोड़े जाने से पहले कई हफ्तों तक उन्हें छांव में रखा जाता है ताकि स्वाद और पोषक तत्वों को बढ़ाया जा सके. फिर उन्हें सावधानी से हाथ से तोड़ा जाता है, सुखाया जाता है और एक मशीन में बारीक पीस लिया जाता है.

मासाहिरो ओकुटोमी ने कहा, “माचा को ठीक से बनाने में कई सालों की ट्रेनिंग लगती है. यह एक लंबा सफर है जिसके लिए उपकरण, श्रम और निवेश की आवश्यकता होती है.” उन्होंने कहा, “मुझे खुशी है कि दुनिया हमारे माचा में दिलचस्पी ले रही है… लेकिन अभी के लिए यह एक खतरे जैसा है – हम इसकी सप्लाई को बरकरार नहीं रख सकते.”

जापान की सरकार चाय उत्पादकों को लागत घटाने हेतु बड़े पैमाने पर माचा की खेती के लिए प्रेरित कर रही है। लेकिन ओकुटोमी का कहना है कि इसके कारण गुणवत्ता प्रभावित होने का खतरा है, और “छोटी ग्रामीण इलाकों में, यह लगभग असंभव है.” उन्होंने बताया कि जापान में चाय के बागानों की संख्या 20 साल पहले के मुकाबले एक चौथाई रह गई है, क्योंकि खेती करने वाले किसानों की उम्र बढ़ रही है और अगली पीढ़ी को माचा की खेती सौंपना उनके लिए कठिन हो रहा है।

ओकुटोमी ने कहा, “नई पीढ़ी को ट्रेनिंग देने में समय लगता है… इसे अचानक सुधारा नहीं जा सकता.”

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